Sunday, July 20, 2008

मानस के सिद्ध स्तोत्रों के अनुभूत प्रयोग

१॰ ऐश्वर्य प्राप्ति
माता सीता की स्तुतिका नित्य श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पाठ करें।

उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्।।” (बालकाण्ड, श्लो॰ )”

अर्थः- उत्पत्ति, स्थिति और संहार करने वाली, क्लेशों की हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों की करने वालीश्रीरामचन्द्र की प्रियतमा श्रीसीता को मैं नमस्कार करता हूँ।।

२॰ दुःख-नाश
भगवान् राम की स्तुतिका नित्य पाठ करें।

यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्।।” (बालकाण्ड, श्लो॰ )

अर्थः- सारा विश्व जिनकी माया के वश में है और ब्रह्मादि देवता एवं असुर भी जिनकी माया के वश-वर्ती हैं। यह सबसत्य जगत् जिनकी सत्ता से ही भासमान है, जैसे कि रस्सी में सर्प की प्रतीति होती है। भव-सागर के तरने कीइच्छा करनेवालों के लिये जिनके चरण निश्चय ही एक-मात्र प्लव-रुप हैं, जो सम्पूर्ण कारणों से परे हैं, उन समर्थ, दुःख हरने वाले, श्रीराम है नाम जिनका, मैं उनकी वन्दना करता हूँ।

३॰ सर्व-रक्षा
भगवान् शिव की स्तुतिका नित्य पाठ करें।

यस्याङ्के विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
भाले बालविधुर्गले गरलं यस्योरसि व्यालराट,
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः
सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम ||” (अयोध्याकाण्ड, श्लो॰१)

अर्थः- जिनकी गोद में हिमाचल-सुता पार्वतीजी, मस्तक पर गंगाजी, ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा, कण्ठ मेंहलाहल विष और वक्षःस्थल पर सर्पराज शेषजी सुशोभित हैं, वे भस्म से विभूषित, देवताओं में श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, संहार-कर्त्ता, सर्व-व्यापक, कल्याण-रुप, चन्द्रमा के समान शुभ्र-वर्ण श्रीशंकरजी सदा मेरी रक्षा करें।

४॰ सुखमय पारिवारिक जीवन
श्रीसीता जी के सहित भगवान् राम की स्तुतिका नित्य पाठ करें।

नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम,
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम ||” (अयोध्याकाण्ड, श्लो॰ )

अर्थः- नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्रीसीताजी जिनके वाम-भाग में विराजमान हैं औरजिनके हाथों में (क्रमशः) अमोघ बाण और सुन्दर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कारकरता हूँ।।

५॰ सर्वोच्च पद प्राप्ति
श्री अत्रि मुनि द्वाराश्रीराम-स्तुतिका नित्य पाठ करें।
छंदः-
नमामि भक्त वत्सलं कृपालु शील कोमलं
भजामि ते पदांबुजं अकामिनां स्वधामदं
निकाम श्याम सुंदरं भवाम्बुनाथ मंदरं
प्रफुल्ल कंज लोचनं मदादि दोष मोचनं
प्रलंब बाहु विक्रमं प्रभोऽप्रमेय वैभवं
निषंग चाप सायकं धरं त्रिलोक नायकं
दिनेश वंश मंडनं महेश चाप खंडनं
मुनींद्र संत रंजनं सुरारि वृंद भंजनं
मनोज वैरि वंदितं अजादि देव सेवितं
विशुद्ध बोध विग्रहं समस्त दूषणापहं
नमामि इंदिरा पतिं सुखाकरं सतां गतिं
भजे सशक्ति सानुजं शची पतिं प्रियानुजं
त्वदंघ्रि मूल ये नराः भजंति हीन मत्सरा
पतंति नो भवार्णवे वितर्क वीचि संकुले
विविक्त वासिनः सदा भजंति मुक्तये मुदा
निरस्य इंद्रियादिकं प्रयांति ते गतिं स्वकं
तमेकमभ्दुतं प्रभुं निरीहमीश्वरं विभुं
जगद्गुरुं शाश्वतं तुरीयमेव केवलं
भजामि भाव वल्लभं कुयोगिनां सुदुर्लभं
स्वभक्त कल्प पादपं समं सुसेव्यमन्वहं
अनूप रूप भूपतिं नतोऽहमुर्विजा पतिं
प्रसीद मे नमामि ते पदाब्ज भक्ति देहि मे
पठंति ये स्तवं इदं नरादरेण ते पदं
व्रजंति नात्र संशयं त्वदीय भक्ति संयुता ” (अरण्यकाण्ड)

मानस-पीयूषके अनुसार यहरामचरितमानसकी नवीं स्तुति है और नक्षत्रों में नवाँ नक्षत्र अश्लेषा है। अतःजीवन में जिनको सर्वोच्च आसन पर जाने की कामना हो, वे इस स्तोत्र को भगवान् श्रीराम के चित्र या मूर्ति केसामने बैठकर नित्य पढ़ा करें। वे अवश्य ही अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी कर लेंगे।

६॰ प्रतियोगिता में सफलता-प्राप्ति
श्री सुतीक्ष्ण मुनि द्वारा श्रीराम-स्तुति का नित्य पाठ करें।

श्याम तामरस दाम शरीरं जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं
पाणि चाप शर कटि तूणीरं नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं ॥१॥
मोह विपिन घन दहन कृशानुः संत सरोरुह कानन भानुः
निशिचर करि वरूथ मृगराजः त्रातु सदा नो भव खग बाजः ॥२॥
अरुण नयन राजीव सुवेशं सीता नयन चकोर निशेशं
हर ह्रदि मानस बाल मरालं नौमि राम उर बाहु विशालं ॥३॥
संशय सर्प ग्रसन उरगादः शमन सुकर्कश तर्क विषादः
भव भंजन रंजन सुर यूथः त्रातु सदा नो कृपा वरूथः ॥४॥
निर्गुण सगुण विषम सम रूपं ज्ञान गिरा गोतीतमनूपं
अमलमखिलमनवद्यमपारं नौमि राम भंजन महि भारं ॥५॥
भक्त कल्पपादप आरामः तर्जन क्रोध लोभ मद कामः
अति नागर भव सागर सेतुः त्रातु सदा दिनकर कुल केतुः ॥६॥
अतुलित भुज प्रताप बल धामः कलि मल विपुल विभंजन नामः
धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामः संतत शं तनोतु मम रामः ॥७॥” (अरण्यकाण्ड)

विशेषः
संशय-सर्प-ग्रसन-उरगादः, शमन-सुकर्कश-तर्क-विषादः।
भव-भञ्जन रञ्जन-सुर-यूथः, त्रातु सदा मे कृपा-वरुथः।।
उपर्युक्त श्लोक अमोघ फल-दाता है। किसी भी प्रतियोगिता के साक्षात्कार में सफलता सुनिश्चित है।

७॰ सर्व अभिलाषा-पूर्ति
श्रीहनुमान जी कि स्तुतिका नित्य पाठ करें।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।” (सुन्दरकाण्ड, श्लो॰३)

८॰ सर्व-संकट-निवारण
रुद्राष्टकका नित्य पाठ करें।

श्रीरुद्राष्टकम्

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् १॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् २॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम्
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ३॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ४॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ५॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ६॥

यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्
तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ७॥

जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ८॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति

इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं संपूर्णम्
विशेषः- उक्तरुद्राष्टकको स्नानोपरान्त भीगे कपड़े सहित शिवजी के सामने सस्वर पाठ करने से किसी भी प्रकारका शाप या संकट कट जाता है। यदि भीगे कपड़े सहित पाठ की सुविधा हो, तो घर पर या शिव-मन्दिर में भीतीन बार, पाचँ बार, आठ बार पाठ करके मनोवाञ्छित फल पाया जा सकता है। यह सिद्ध प्रयोग है। विशेषकरनाग-पञ्चमीपर रुद्राष्टक का पाठ विशेष फलदायी है।

No comments: